ओ जी जांच तो होनी ही चाहिए!


जांच का तो मैं जन्मजात हिमायती रहा हूं जी । पैदा होते ही जब मैंने आंखें खोलकर अपने घर का मुआयना किया तो घर में वीडियो गेम्ज, मोबाईल, लैपटाप, एसी, फुल साईज का कलर टीवी वगैरह—वगैरह न पाकर फौरन भगवान से यह जांच करवाने की मांग की थी कि जब जन्म देकर दुनिया में भेजना ही था तो ऐसे घर में क्यों भेजा, जहां मास्टरगिरी करके घर की दाल रोटी चलती है। किसी नेता, अभिनेता, क्रिकेटर, या किसी डॉन के घर पैदा क्यों नहीं किया? किसी मलाईदार विभाग में तैनात बड़े अफसर के घर में भी अगर मेरी पोस्टिंग कर देता यानि कि जन्म दे देता तो भगवान जी का क्या घिस जाता? चूंकि भगवान ने इस तरह की किसी भी जांच के कोई आदेश नहीं दिए, इसलिए मैं आज भी अपनी इस मांग पर बदस्तूर कायम हूं . और सिर्फ इस मांग पर ही नहीं बल्कि मैं तो यह चाहता हूं कि इस मुल्क में बाकी जो कुछ भी हो रहा है या नहीं हो रहा है, उसकी भी जांच चलती रहनी चाहिए। मसलन किस जनसेवक ने देश सेवा के नाम पर देश को कहां—कहां, कैसे—कैसे और कितना—कितना चूना लगाया, अपनी नालायक औलाद को कहां—कहां फिट करवाया, कितने गुंडे— मवालियों को थानों से छुड़वाया, कितने विरोधियों को पिटवाया? या समाजसेवा करते हुए किसी जनसेवक ने कितनी चांदी कूटी, कितनी डीलें कीं, कितने घपले किए और कितने दो नंबर के कामों को अंजाम दिया? जांच इस बात की भी होनी चाहिए कि जब मुल्क के सदनों में आपराधिक छवि के लोग जीतकर आ रहे हैं तो स्वच्छ छवि वाले माननीय सभासद अपना टाईम पास कैसे करते
हैं या फिर स्वच्छ छवि के सभासदों के बीच बैठकर अस्वच्छ छवि वाले माननीयगण क्या महसूस करते हैं और इन छवियों के संगम में मुल्क के लोकतंत्र की क्या छवि दिखती है? चूंकि मैं खेलप्रेमी भी हूं इसलिए मैं इस बात की जांच की मांग भी करूंगा कि अपनी इंडिया टीम में सारे के सारे खिलाड़ी ही क्यों लिए गए हैं, कुछ लीडरों को मौका क्यों नहीं दिया गया? क्या उनमें देश का गौरव बढ़ाने की कपैसिटी नहीं है? जब लीडर लोग खेल संघों में अपनी अमूल्य सेवाएं देकर देश में खेलों को बढ़ावा दे सकते हैं तो बल्ला या गेंद हाथ में पकड़कर पिच पर जलवा क्यों नहीं दिखा सकते? प्लानिंग या पैंतरेबाजी में क्या खिलाड़ी लीडरों का मुकाबला कर सकते हैं? हार का ठीकरा दूसरों पर फोड़ सकते हैं? नहीं न ! तो फिर लीडरों की क्वालिटियों का मुल्क ने क्रिकेट के मैदान में आज तक फायदा क्यों नहीं उठाया, क्या इसकी जांच होनी नहीं चाहिए? इसके अलावा इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि जब देश में इतने सारे बाहुबलि हैं और इन बाहुबलियों के इतने सारे चेले—चांटे हैं तो फिर किसी भी मैच में सुरक्षा व्यवस्था पर सरकार इतने पैसे क्यों खर्च करती है? क्यों इतना टीए, डीए सुरक्षा कर्मियों को देती है? आखिर यह देश बाहुबलियों और गुंडों की सेवाएं क्यों नहीं लेता? जब चुनावों और दंगों में माननीय नेतागण इनकी सेवाएं ले सकते हैं तो मैचों में आज तक क्यों नहीं ली गई, इसकी जांच होनी ही चाहिए।
इसके अलावा जांच यह भी होनी चाहिए कि मुल्क के ख़जाने की असली चाबी किसके पास होती है— सरकार के पास या नेताओं के पास या धन्नासेठों के पास या अफसरों के पास या फिर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास? जांच यह भी होनी चाहिए जी कि इस खज़ाने से निकला पैसा कहां जाता है ? गरीब के कटोरों में, नेताओं और अफसरों के लॉकरों में, ठेकेदारों के बंगलों में या फिर स्विस बैंकों में?
                                             इन सारी जांचों की मांग करते हुए मैं यह भी अर्ज़ करना चाहूंगा कि लेखक लोग भी इस देश की व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग हैं लिहाजा जो लेखक व्यंग्य न लिखकर सिर्फ कविता, कहानी, उपन्यास या अन्य फालतू फंड की चीज़ें लिख रहे हैं, उन्हें जांच एजेंसियों द्वारा तलब करके यह पूछा जाना चाहिए कि वे व्यग्ंय क्यों नहीं लिख रहे? और जो लेखक व्यंग्य लिख रहे हैं, उन बारे जांच बिठाई जानी चाहिए कि वे व्यंग्य ही क्यों लिख रहे हैं? उन्हें इस व्यवस्था में क्या व्यंग्य ही दिखता है? कोई लैला—मजनू टाईप की प्रेम कहानी नहीं दिखती? (ऑनर किलिंग प्राईवेट मसला है, इसमें टांग नहीं अड़ाएंगे) कोई इंटरनेटिया इश्क परवान चढ़ते नहीं दिखता?
                                                  चलते—चलते आखिरी मांग और वह यह कि बाकी जांचें हों न हों लेकिन यह जांच जरूर होनी चाहिए कि इस व्यंग्य का व्यवस्था पर क्या असर हुआ है? माफ करना, यह अर्ज़ करना तो भूल ही गया कि अगर संपादक जी यह व्यंग्य नहीं छापते तो इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि इसे क्यों नहीं छापा गया?

1 comment:

  1. शुक्र है.... अब अच्छे व्यंग्य पढ़ने को मिलेंगे...

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